Wednesday, October 6, 2010

दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स-2010

घाटे का सौदा
घोटाले जितने भी हुए हों लेकिन अब लगभग देश का हर नागरिक यही चाहता है कि कॉमनवेल्थ गेम्स सफल हों और देश की साख बच जाए। कॉमनवेल्थ गेम्स के लगभग हर विभाग में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। स्टेडियम से लेकर सड़कों तक, होटलों से लेकर खिलाडिय़ों को दी जाने वाली वर्दी तक, हर काम में घपले हुए हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स के तहत हुए निर्माण कार्यों में अब तक 70 मजदूरों की मौत हो चुकी है। भ्रष्टाचार का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। तथ्यों कों उजागर करती इमरान खान की रिपोर्ट
19वें कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 में दिल्ली में होने हैं यह फैसला 2003 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान ही हो गया था। आज कॉमनवेल्थ गेम्स देश की प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है तो देश का बुरा हाल है। भारतीय नेताओं ने अपने लोगों को लूटकर जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाया है ये तो काबिलेतारीफ है ही, इसके अलावा भी कॉमनवेल्थ गेम्स के बहुत से पेच अभी तक दबे हैं जो शायद कभी न खुलें।
इतनी लेट लतीफी क्यों? - जब 2003 में ही तय हो गया था कि अक्टूबर 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स दिल्ली में होने हैं तो फिर सरकार नींद से पहले क्यों नहीं जागी? सात साल गेम्स की तैयारियों के लिए काफी थे। पर सरकार ने पहले ध्यान नहीं दिया। अब नेताओं का कहना है कि पहले गेम्स हो जाने दीजिए, विवादों पर बाद में बात करेंगे।
सरकारी एजेंसियां कठघरे में - केंद्रीय सर्तकता आयोग ने कॉमनवेल्थ गेम्स से जुड़े निर्माण कार्यों में पांच सरकारी एजेंसियों को दोषी पाया है। सर्तकता आयोग के मुताबिक इन पांचों एजेंसियों ने मनमर्जी से ठेके दिए फिर भी कोई काम ठीक ढंग से नहीं हुआ। लोक निर्माण विभाग, एमसीडी, डीडीए, एनडीएमसी और राइट्स के संदेह के घेरे में आने का सीधा मतलब यही है कि हर जगह गड़बड़ घोटाला है।
नहीं होने वाला कोई फायदा - भारत ने 2003 में जब कॉमनवेल्थ की मेजबानी हासिल की थी तो खेलों की लागत 767 करोड़ रुपए आंकी गई थी जो अब तक बहुत ज्यादा हो चुकी है। अब सरकार ने खेलों की लागत 11294 करोड़ बताई है। जब मेजबानी लेने की बात उठी थी तो बड़ी-बड़ी बातें की गईं थी कि खेलों के आयोजन से देश को बहुत आर्थिक फायदा होगा। अगर इतिहास के पन्ने पलटे तो पता चलता है कि चाहे ओलंपिक खेल हों, एशियाई खेल या फिर कॉमनवेल्थ गेम्स ये कभी फायदे का सौदा रहे ही नहीं। जानकारों का मानना है कि दिल्ली के लोग अगले 25 साल तक कॉमनवेल्थ के कर्जों को टैक्स के रूप में भरेंगे। 1976 में हुए ओलंपिक खेलों का आयोजन करने वाला मांट्रियल 2006 में कर्जों से उभर पाया है। ग्रीस 2004 में हुए ओलंपिक खेलों से कर्जे में इस कदर डूबा कि आजतक नहीं उबर पाया।
होटल और इमारतें भी राम भरोसे - कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए 26 फ्लाई ओवर, 28 रेलवे पुल, 16 होटल और लगभग 3000 किलोमीटर सड़क निमार्ण होना था। कॉमनवेल्थ के लिए बनाई इमारतें तो कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले ही धराशायी होना शुरू हो गईं है। लगता है इन होटलों को भी लंबे समय तक इस्तेमाल कर पाना मुश्किल ही है।
जम के लूटा नेताओं ने - कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए एक, दो स्टेडियम को छोड़कर लगभग सभी स्टेडियमों का पुननिर्माण ही किया गया है। नेहरू स्टेडियम को 1982 में एशियाड खेलों के लिए बनाया गया था। इस स्टेडियम के नवीनीकरण के लिए खर्च आया है एक हजार करोड़ रुपए। इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम को भी 650 करोड़ के भारी भरकम खर्च से संजाया संवारा गया है। यह भी 1982 में एशियाड खेलों के लिए तैयार किया गया था। जितने पैसे सरकार ने स्टेडियमों के नवीनीकरण में खर्च किए हैं उतने में नए स्टेडियम तैयार हो सकते थे।
70 मजदूरों की गईं जानें - कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों में अब तक 70 मजदूरों ने जान गवांई है। इन सब मजदूरों की मौत कार्यस्थल पर ही हुई है। हाल ही में फुट ओवरब्रिज गिरने से 27 मजदूर घायल भी हुए जिनमें से 5 की हालत नाजुक बताई गई है। इससे पहले भी कई मजदूर गंभीर रूप से घायल हुए जो जिंदगी-मौत की लड़ाई लड़ रहे हैं।
रिश्वत देकर हासिल की मेजबानी !- भारत ने कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन की दावेदारी को हासिल करने के लिए सभी 72 कॉमनवेल्थ देशों को एक-एक लाख डॉलर की घूस दी थी। 'डेली टेलीग्राफÓ अखबार ने यह दावा किया था। अखबार के मुताबिक खेलों के आयोजन की दावेदारी में जमैका के फाइनल प्रेजेंटेशन में भारत अंतिम समय में पिछड़ गया था। पैसे की पेशकश किए जाने के बाद ही उसे यह दावेदारी हासिल हो सकी। रिपोर्ट के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया को भारत से लगभग एक लाख 25 हजार डॉलर की राशि घूस के रूप में मिली थी। जमैका में हुए फाइनल प्रेजेंटेशन में दिल्ली को खेलों की मेजबानी पर मुहर लगी। इसमें सभी 72 देशों को एथलीट ट्रेनिंग स्कीम के नाम पर एक-एक लाख डॉलर (उस समय के लगभग एक लाख 40 हजार डॉलर) दिए गए। जो धन सभी देशों को भारत की ओर से दिया गया वह ऑस्ट्रेलिया के लिए महत्वपूर्ण नहीं रह गया था क्योंकि उसने पहले ही भारत की दावेदारी का समर्थन कर दिया था।