Sunday, June 20, 2010

तैयार हो रही देश की युवा ब्रिगेड

आज जब लोग क्रिकेट के अलावा कुछ और देखना ही नहीं चाहते। बाकी खेलों की घटती लोकप्रियता के बीच एक ऐसा इंसान भी है जो पिछले बीस वर्षों से टेनिस के खिलाडिय़ों को तराश रहा है। ताकि वो विंबलडन जैसे बड़े टूर्नामेंट में जीत कर भारत को खेलों की दुनिया में बाकी देशों के बराबर खड़ा कर सके। जिसके लिए बाकायदा कोचिंग सेंटर खोलकर टेनिस में रूचि रखने वाले युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
इमरान खान
भारत में
टेनिस की स्थिति भी क्रिकेट को छोड़ कर बाकी बचे उन खेलों जैसी ही है जिसमें सिर्फ चंद नाम ही सुनने को मिलते हैं। लिएंडर पेस, महेश भूपति और सानिया मिर्जा को छोड़ दिया जाए तो शायद ही कोई ऐसा नाम हो जिसने टेनिस के अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में भारत को अन्य देशों के बराबर खड़ा किया हो। जब देश को अच्छे टेनिस खिलाडिय़ों की सख्त जरुरत है तो एक एकेडमी ऐसी भी है जो पिछले 20 वर्षों से टेनिस के नए सितारों को तराशने में जुटी है।
क्या है लक्ष्य : पेनिनसुला नामक टेनिस एकेडमी पिछले 20 सालों से देश के खिलाडिय़ों की प्रतिभा को निखारने में लगी है। ये भारत की सबसे पुरानी और बड़ी टेनिस एकेडमी भी है। दिल्ली, गुडग़ांव, नोएडा, फरीदाबाद, कानपुर और जालंधर समेत देश भर के 27 कोचिंग सेंटरों के करीब 6000 टेनिस खिलाड़ी इस एकेडमी में भविष्य के टेनिस को नए आयाम और अपने सपनों को उन्मुक्त आसमान देने की कोशिश कर रहे हैं।
नहीं है सुविधाओं की कमी : यहां खिलाडिय़ों को आगे बढऩे के लिए हर तरह की सुविधा दी जाती है। यह भारत की ऐसी पहली एकेडमी है जहां खिलाडिय़ों को टेनिस मशीन द्वारा ट्रेनिंग दी जाती है। भारत में पहली बार इन हाऊस ट्रेनिंग का श्रेय भी इसी एकेडमी को जाता है। स्टेट या नेशनल स्तर के टूर्नामेंटों के अलावा एकेडमी के दूसरे सेंटरों के खिलाडिय़ों में भी मैच करवाए जाते हैं ताकि खिलाडिय़ों में प्रतियोगिता की भावना पैदा हो सके और वे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलने को तैयार हो सकें। इसी एकेडमी से नेशनल लेवल के कई खिलाड़ी भी नाम कमा चुके हैं।
विंबलडन है टार्गेट : : पेनिनसुला टेनिस एकेडमी केचेयरमैन बॉबी सिंह बताते हैं कि उनकी एकेडमी का एकमात्र लक्ष्य यही है कि भारत के खिलाड़ी विंबलडन में जीत का परचम लहराएं। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए वो पिछले बीस वर्षों से दिन रात मेहनत कर रहे हैं और तब तक करते रहेंगे जब तक उनका ये सपना पूरा नहीं हो जाता।
स्र्पोट्स कल्चर का अभाव : उनके मुताबिक सरकार को स्कूलों में स्र्पोट्स कल्चर होना बहुत जरूरी है। सरकार शिक्षा प्रणाली में सुधार करके खेलों को पढ़ाई के एक अंग के रुप में उभारे जिससे विद्यार्थी में खेलों के प्रति समर्पण का भाव पैदा हो तो ही हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा सकेंगे। स्पोर्ट्स कल्चर शुरू होने से विद्यार्थी पढ़ाई के साथ खेलों पर भी ज्यादा ध्यान देंगे। अगर सरकार स्कूलों में स्पोर्ट्स कल्चर पैदा करने में कामयाब हो जाती है तो भारत को भी खेलों की दुनिया में छा जाने से कोई नहीं रोक सकता।
उत्साह से लबरेज हैं युवा खिलाड़ी : स्टेट और नेशनल लेवल के टूर्नामेंट खेल चुकी पूर्वा चौधरी और अशोक कुमार को अच्छा लगता है जब वो कोई टूर्नामेंट जीतकर घर आते हैं। पूर्वा चौधरी बताती हैं कि सानिया मिर्जा उनकी रोल मॉडल है और वो सानिया की तरह एक अच्छी खिलाड़ी बनकर देश का नाम रोशन करना चाहती है। पूर्वा, सानिया का कोई भी मैच मिस नहीं करती और उसके हर मैच से उसे कुछ ना कुछ सीखने को मिलता है। नेशनल लेवल के टूर्नामेंटों में अपने अपनी प्रतिभा दिखा चुके अशोक कुमार रोजर फेडरर के खेल से काफी प्र्रभावित है और उनके जैसा ही बनना चाहते हैं। अशोक का कहना है कि स्टेट और राष्ट्रीय स्तर पर कुछ और नए टूर्नामेंट शुरू होने चाहिए जिससे खिलाडिय़ों को और ज्यादा घरेलू मैच खेलने का मौका मिल सके जिससे वो बड़ी चुनौतियों का सामने करने में सक्ष्म हो सकें।
सख्त मेहनत की जरूरत : कोच अजय और विजय बताते हैं हमारे खिलाडिय़ों में मेहनत की कमी है। स्टेट या नेशनल लेवल पर खेलने के बाद खिलाड़ी प्रैक्टिस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। शायद इसी कारण हमारे खिलाड़ी बड़े स्तर के टूर्नामेंटों में अच्छा प्रर्दशन नहीं कर पाते। खिलाडिय़ों को कम से कम 5 घंटे रोजाना कोर्ट में पसीना बहाने की जरुरत है इसके बाद ही इंटरनेश्नल लेवल पर ये अपनी जीत का परचम लहरा सकेंगे। खिलाडिय़ों को एक और बात पर ध्यान देना जरूरी है कि वो ट्रेनिंग को बीच में न छोड़ें , क्योंकि ऐसा करने से लय खराब होती है जिससे वो अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते जिसका असर सीधे उसके खेल पर पड़ता है। उनके मुताबिक जब हमारे खिलाड़ी नेशनल लेवल पर जीतते हैं तो वे स्पोर्टसमैन कम और बिजनेसमैन ज्यादा हो जाते हैं। उनके पास एड और मॉडलिंग के इतने ऑफर आने शुरू हो जाते हैं कि वो खेल की तरफ ध्यान देना बंद कर देतें हैं और उनका मकसद सिर्फ पैसा कमाना ही हो जाता है। ऐसे खिलाड़ी फिर इंटरनेशनल लेवल पर ज्यादा कामयाब नहीं हो पाते क्योंकि खेल में तरक्की करने का एकमात्र तरीका सिर्फ प्रैक्टिस ही है।

एक ही शख्स काफी है जानने के लिए

आम लोगों के लिए अमृता प्रीतम इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन वे आज भी जिंदा हैं। हंसती-बोलती। उन्हें देखने जाना होगा साऊथ दिल्ली के हौज खास इलाके में। जहां मशहूर आर्टिस्ट इमरोज अमृता को जी रहे हैं। शायराना लफ्जों में कहें तो एक जिस्म में दो शख्स जिंदा हैं। इमरोज की जुबान से बोलतीं अमृता का अहसास उस घर की दरो-दीवार में यूं समाया हैं जैसे अमृता-इमरोज के भीतर मुहब्बत का समुन्दर। एक कदम आगे के लिए इमरान खान ने की इमरोज से खास मुलाकात, जिसमें इन दो शख्ससीयतों के कई पहलु दिखाई दिये। पेश हैं इस मुलाकात के चंद अहम हिस्सों के लफ्ज।
आप कलाकार हैं, पर आज तक आपने अपनी कोई पेंटिंग बेची नहीं और ना ही कोई एग्जीबिशन लगाई, ऐसा क्यों?
मैं आर्टिस्ट हूं यह बात मुझे पता है। मैं ये लोगों को क्यों बताऊं कि मैं आर्टिस्ट हूं। जिसे मेरी पेंटिंग पसंद होगी वो खुद आकर देख लेगा। ना मुझे शौक है कि लोग मेरे बारे में जानें और ना ही अमृता को। और हां अगर हम एग्जीबिशन लगाएं तो ऐसे लोग आएंगे जो हमें जानते ही नहीं, इसका क्या मतलब? ये सब फिजूल है। मुझे पता होना चाहिए कि मैं आर्टिस्ट हूं और किसी को पता नहीं तो भी कोई बात नहीं। मैं और अमृता दोनों इसी तरह ही रहे हैं। हर लेखक की किताब पर पहले 3-4 पेज की भूमिका होती है, जो दूसरे लोगों ने लिखी होती है। जो सीधा लेखक को ओब्लाइज करती हैं। अमृता की लगभग 75 किताबें छपी हैं पर उसकी एक भी किताब पर मैंने ऐसा कुछ नहीं देखा। हम सिर्फ अपने लिए जिए हैं। मैं अमृता को जानता हूं, अमृता मुझे जानती है। दुनिया में एक ही आदमी काफी है आपको जानने के लिए। सब समाज का रोना रोते हैं, आखिर समाज है कहां? आम आदमियों को ही आपने समाज का नाम दे रखा है। मैं ही अमृता का समाज हूं और वो मेरी समाज है। बाकी किसी से हमें कुछ नहीं लेना।
आपका रहन-सहन कैसा था?
हम सादे जीवन में ही यकीन रखते हैं। मैं और अमृता किसी को खाने पर नहीं बुलाते। ये तो हमारी मर्जी है कि हमें किसी को बुलाना है या नहीं। हम दोनों एक ही सब्जी से खाना खाते हैं। अगर किसी को बुलाते हैं तो उसके लिए सब्जी भी बनानी पड़ेगी। क्या जरूरत है ये सब करने की। लोग नौकर क्यों रखते हैं, क्योंकि वह उन्हें आराम देते हैं। वह उनका ध्यान रखते हैं। मैं अपने कमरे में पेंटिंग बना रहा होता हूं। अमृता अपने कमरे में लिख रही होती है तो हमें नौकर का ध्यान रखना पड़ता, कि वो क्या कर रहा हैं, इसलिए हम नौकर नहीं रखते। अगर औरत घर में रहती है तो वो खाना क्यों नहीं बनाती। अमृता इनती बड़ी लेखिका है, आखिरी समय तक उसने खुद खाना बनाया है। मैं उसके साथ रसोई में काम करता हूं, दोनों मिल के सारा काम करते हैं। जो काम दो घंटों में होना था, वो एक घंटे में हो जाता है। हमें नहीं लगता लोगों को घर बुलाना जरूरी है। हां अगर हम खाना खा रहे हैं और कोई आ जाए तो वह भी हमारे साथ खा ले, जो हम खा रहे हैं।
आप खुदा में यकीन रखते हैं?
लोग मंदिर, मस्जिद या गुरद्वारे क्यों जाते हैं? क्योंकि उन्होंने भगवान से कुछ मांगना होता है। क्या भगवान किसी का नौकर है? वह किस-किस के काम करता रहेगा। आप भगवान के पास सिर्फ मांगने जाते हैं। हमें किसी चीज की जरूरत नहीं, हम नहीं जाते। आप ऐसा क्यों कहते हैं कि अगर हमारा ये काम हो जाए तो हम हवन या और कुछ करवाएंगे, आप सीधा-सीधा भगवान को रिश्वत दे रहे हैं। अरे भगवान को तो छोड़ दीजिए। कोई कहता है भगवान मेरी शादी करवा दो। कोई कहता है मुझे पास करवा दो। और तो और चोर कहता है कि मेरी चोरी पर पर्दा डाले रखना। वो ये नहीं कहता कि मेरी चोरी की आदत छुड़वा दो। अगर आप सोचते हैं कि खुदा है तो आप सब चीजें उस पर छोड़ देते हैं। अगर सोचते हैं कि नहीं है तो आप दो तरीकों से सोचते हैं। लोग कहते हैं कि सब कुछ भगवान की मर्जी से ही होता है। तो अगर किसी का मर्डर होता है, तो फिर वो भी भगवान की मर्जी से हुआ होगा। तो उसको क्यों पकड़ते हो? भगवान को पकड़ो जाकर। मर्डर पर आकर बात बदल जाती है।
आप और अमृता मुशायरों में नहीं जाते, क्यों?
मुशायरा और मूड का होता है, हम उसमें फिट नहीं बैठते। मैं कभी मुशायरे में नहीं जाता, शायद अमृता एक बार गई है। मुशायरा सब शायरों को पसंद भी नहीं। शायर पर्दे के पीछे शराब पी रहे होते हैं और फिर शायरी शुरू कर देते हैं। पहले तो छोटे-मोटे शायरों को पढ़वाया जाता है, बड़े शायर तो आखिर में आते हैं, ताकि भीड़ बनी रहे। ऐसा करने की क्या जरूरत है, क्यों न उन अच्छे शायरों की ही ज्यादा नज्में सुन ली जाएं।
आपने अमृता जी के साथ अपना पहला जन्मदिन मनाया था, कैसा महसूस हुआ?
अच्छा लगा। वो तो बाइचांस ही मना लिया। उसके और मेरे घर में सिर्फ एक सड़क का फासला था। मैं उससे मिलने जाता रहता था। उस दिन हम बैठे बातें कर रहे थे, तो मैंने उसे बताया कि आज के दिन मैं पैदा भी हुआ था। वो उठ कर बाहर गई और फिर आकर बैठ गई। हमारे गांव में जन्मदिन मनाने का रिवाज नहीं है, अरे पैदा हो गए तो हो गए। ये रिवाज तो अंग्रेजों से आया है। थोड़ी देर के बाद उसका नौकर केक लेकर आया, उसने केक काटा थोड़ा मुझे दिया और थोड़ा खुद खाया। ना उसने मुझे हैप्पी बर्थडे कहा, ना मैंने उसे थैंक्यू। बस दोनों एक-दूसरे को देखते और मुस्कुराते रहे।
आप लगभग 40 सालों तक एक साथ रहे, फिर भी कभी प्यार का इजहार नहीं किया?
इजहार करने की जरूरत क्या है। अगर कोई बिना कुछ बोले ही सब कुछ बोल दे तो क्या जरूरत है। 40 सालों में हमने एक-दूसरे को आई लव यू नहीं कहा। प्यार है तो है, बताने की क्या जरूरत है। अगर मुझे कोई खूबसूरत लगता है तो लगता है। उसको खुद-ब-खुद अहसास हो जाएगा। अगर हम किसी को कहते हैं कि तुम मुझे खूबसूरत लगती हो, इसका मतलब कि हम कहना चाहते हैं कि मैं तुम्हें प्यार करता हूं और तुम भी मुझे प्यार करो। प्यार को इजहार की जरूरत नहीं, इजहार तो कोशिश है प्यार बनाने की।
अमृता जी खाना बनाना कब शुरू किया था?
अमृता ने पहले कभी खाना नहीं बनाया था पर जब हम इक्ट्ठे रहते थे तो उसने खाना बनाना शुरू किया और आखिर तक बनाती रही। उसने मुझे बताया नहीं कि मैं खाना बनाऊंगी, बस बनाना शुरू कर दिया, जब आपकी आखें सब कुछ बोल रही हों तो लबों से बोलने की जरूरत नहीं होती। मुझे भी उसके साथ काम करना अच्छा लगता है। आम घरों में क्या होता है आदमी अखबार पढ़ रहा होता है और औरत अकेले खाना बनाती है। वो सिर्फ ऑर्डर करता है, कभी चाय लाओ तो कभी पानी। मदद करने किचन में नहीं जाता। वो तो सिर्फ हुक्म देता रहता है। औरत जिस्म से भी बहुत आगे है और ऐसे लोगों को पूरी औरत नहीं मिलती। पूरी औरत उसी को मिलती है जिसे वो चाहती है।
उनका कमरा घर की शुरुआत में और आपका आखिर में, ऐसा क्यों?
मैं एक आर्टिस्ट हूं और वो लेखिका। पता नहीं कब वो लिखना शुरू कर दे और मैं पेंटिंग करना। इतना बड़ा घर होता है। फिर भी पति-पत्नी एक बिस्तर पर क्यों सोते हैं? क्योंकि उनका मकसद कुछ और होता है। हमारा ऐसा कुछ मकसद नहीं, इसलिए हम अलग सोते हैं। सोते वक्त अगर मैं हिलता तो उसे परेशानी होती और अगर वो हिलती तो मुझे। हम एक-दूसरे को कोई परेशानी नहीं देना चाहते। आज शादियां सिर्फ औरत का जिस्म पाने के लिए होती हैं। मर्द के लिए औरत सिर्फ सर्विंग वूमैन है, क्योंकि वह नौकर से सस्ती है। ऐसे लोगों को औरत का प्यार कभी नहीं मिलता। आम आदमी को औरत सिर्फ जिस्म तक ही मिलती है। प्यार तो किसी किसी को ही मिलता है।
अब आपका रहन-सहन कैसा है?
अब मैं घर में ही रहता हूं, क्या जरूरत है बाहर जाने की। कविताएं लिखता हूं, पेंटिंग करता हूं, खुश हूं अपनी जिंदगी से। हां कभी-कभी सब्जी लेने जरूर चला जाता हूं।
आज कल के लोगों के बारे में क्या कहेंगे?
आज कल कोई जिंदा नहीं है। सब डेड हो चुके हैं। जो सॉरी नहीं कहता वो मर चुका है क्योंकि जिंदा आदमी कभी न कभी एक बार तो अपनी गलती का अहसास करता ही है। गुजरात दंगों में एक हजार से ज्यादा मुसलमान मारे गये पर आज तक गुजरात के किसी एक भी व्यक्ति ने गलती नहीं मानी, क्यों? क्योंकि वो मर चुके हैं। आज कोई भी मजहब इंसान नहीं बना रहा, सब अपने इस्तेमाल के लिए आदमी बना रहे हैं। कोई ये नहीं कह सकता है हम दूसरों से अच्छे हैं क्योंकि सब वहशी हो चुके हैं।

Saturday, June 19, 2010

अपनी भाषा को ना भूलें

कॅरियर को लेकर आज के युवाओं में जितनी सर्तकता है उतना ही असमंजस भी। तमाम विकल्पों में से किसी एक को चुनने की कवायद में कई तरह के सवाल उठना लाज़मी है। ऐसे ही कुछ सवालों को लेकर इमरान खान ने चर्चा की सीबीआई के पूर्व निदेशक और जाने-माने कॅरियर काउंसलर जोगिंदर सिंह से। पेश है बातचीत के कुछ खास अंश।
अभी-अभी हम मंदी के दौर से गुजरे हैं जिसके कारण युवाओं ने भारी संख्या में नौकरियां गवाईं हैं। उन युवाओं के सामने क्या चुनौतियां हैं?
मैं युवाओं को यही कहना चाहूंगा कि जो हुआ उसे भूल कर नईं शुरुआत करें। काम चाहे कोई भी हो पूरी मेहनत और शिद्दत के साथ करें क्योंकि जितना गुड़ डालो मीठा उतना ही होता है। काम को काम समझ कर करें, सिर्फ छोटा-बड़ा समझ कर किसी काम को छोडऩा ठीक नहीं। मेहनत से काम करें सफलता जरूर मिलेगी।
ग्रेडिंग सिस्टम शुरू होने के कारण कोई फेल नहीं हुआ जिससे आत्महत्याएं बंद हो गई, यह तो ठीक है पर भविष्य में ग्रेडिंग सिस्टम कितना प्रभावशाली रहेगा?
यह सच है कि ग्रेडिंग सिस्टम से कोई फेल नहीं हुआ। ग्रेड चाहे कोई भी हो सभी पास हुए हैं। युवाओं के लिए ये तो शुरुआत है। कम्पीटीशन तो वह 12वीं की परीक्षा के बाद फेस करेंगे। अगर उन्होंने बिना पढ़ाई किए कम ग्रेड में परीक्षा पास कर भी ली तो उसका कोई फायदा नहीं क्योंकि जब वो कम्पीटीशन एग्जाम में बैठेंगे तो उन्हें अपनी काबलीयत का पता चलेगा। फिर उनके पास कोई रास्ता नहीं बचेगा। इसलिए ठीक तो यही होगा कि अच्छी तरह पढ़ाई करें और अच्छे ग्रेड लेकर ही आगे बढ़े ताकि आपके भविष्य की राह आसान हो सके।
प्रोफैशनल कोर्स करने के बाद भी जिन युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही उन्हें क्या करना चाहिए?
बिजनैस करें। अगर प्रोफैशनल कोर्स करने के बाद नौकरी नहीं मिल रही तो सारी उमर इसका रोना रोने से भी कोई फायदा नहीं। अच्छा यही होगा कि वह अपना खुद का बिजनैस शुरू करें और अपने साथ-साथ दूसरों को भी रोजगार दें। शुरुआत सब छोटे से ही करते हैं, इसलिए चाहे छोटा ही हो अपना बिजनैस ही करें।
फिल्म इंडस्ट्री में ग्लैमर के कारण लोग महंगे कोर्स चुनते तो हैं पर कामयाबी नहीं मिलती क्या कहेंगे?
फिल्म इंडस्ट्री में कामयाब होने में जिंदगी निकल जाती है। अगर युवा समझते हैं कि कोर्स करने के तुरंत बाद ही उन्हें कामयाबी मिल जाएगी तो यह उनकी भूल है। इस इंडस्ट्री में तपस्या करनी पड़ती है, तपना पड़ता है तब जाकर सफलता मिलती हैं, और हां सिखर पर जगह बहुत कम होती है वहां कुछ ही लोग ठहर सकते हैं और वो भी कुछ समय के लिए। इसलिए ग्लैमर से प्रभावित होकर किसी कोर्स को तभी चुनें जब आपमें दुनिया जीतने की हिम्मत हो।
युवा विदेशों में पढऩे जाते हैं और फिर वहीं सैटल हो जाते हैं। इस बारे में आपके क्या विचार हैं?
युवा विदेशों में पढऩे जाते हैं और अगर उन्हें वहीं अच्छी नौकरी मिल जाती है तो वहां रहने में बुराई क्या है। आखिर पढ़ाई भी तो उन्होंने अच्छी नौकरी पाने के लिए ही की है।
आपके हिसाब से युवाओं को करियर प्लानिंग कब से शुरू कर देनी चाहिए?
देखिए, जितनी जल्दी बीज बोया जाएगा उतनी जल्दी ही उसमें पौधा लगेगा जो आगे जाकर पेड़ बन कर दूसरों को छाया देगा। युवा जितनी जल्दी अपना रोड मैप तैयार करके उस पर चलना शुरू कर देंगे उतनी जल्दी ही वह संघर्ष के रास्ते को पार कर के कामयाबी की मंजिल तक पहुंच सकेंगे। अपनी रूचि के हिसाब से यह फैसला कर लें कि आपको कौन सी फिल्ड चुननी है और उस पर काम शुरू कर दें। अक्सर युवा +2 के बाद ही यह सोचना शुरू करते हैं कि उन्हें डॉक्टर बनना है या इंजीनियर, ये ठीक नहीं है। अगर किसी ने आईएएस या आईपीएस की परीक्षा पास करनी है तो वह सातवीं या आठवीं से ही उस बारे में सोचना शुरू कर दे और जब वह 12वीं पास करेगा तो काफी हद तक उसकी तैयारी हो चुकी होगी। इसलिए मेहनत से काम करें आपको कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता।
कोचिंग इंस्टीट्यूट बहुत खुल रहे हैं। हर कोई पास होने की 100 फीसद गारंटी देता है ये कहां तक ठीक है?
ये सब दुकानें हैं। लोगों ने मुनाफे के लिए दुकानें खोल रखी हैं। इनमें से कुछ अच्छे लोग भी हैं मगर बुरे लोगों के कारण अच्छों का भट्टा भी बैठ गया है। ऐसे लोगों पर कार्रवाई करके इनको बंद करवा देना चाहिए।
आज हर युवा अंग्रेजी में ही पढऩा पसंद करता है। हिन्दी में पढ़ाई तो किसी को मंजूर ही नहीं। ऐसा क्यों?
नहीं ऐसा नहीं है, आजकल युवा हिंदी को भी उतना ही महत्व देते हैं जितना कि अंग्रेजी को। दूसरी भाषा को सिखने का क्रेज अच्छी बात है पर उस चक्कर में अपनी भाषा को भूलना बुरी बात है। इसलिए मैं तो युवाओं को यही कहूंगा कि अपनी भाषा को में पढ़ाई करें ताकि वो दुनिया में और प्रसिद्ध हो सके।
आने वाले समय के उभरते क्षेत्र क्या होंगे?
इंफ्रास्ट्रक्चर, इंडस्ट्री और निर्माण कार्यों में आने वाले समय में युवाओं के लिए अच्छे भविष्य की उम्मीद की जा सकती है। बशर्ते कि वो मेहनत करने से पीछे ना हटे।
युवाओं को उज्जवल भविष्य की प्लानिंग के लिए क्या संदेश देंगे।
युवा एक बात का हमेशा ध्यान रखें कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए दिन 24 घंटों का ही होता है। इसलिए आपकों उन्हीं 24 घंटों में कुछ अजूबा करना होगा तभी दुनिया आपको याद करेगी। 24 घंटों में अगर आप 8 घंटे सोते हैं, 8 घंटे काम करते हैं, 2-3 घंटे आपके खाने पीने में खर्च होंगे, इसके बाद आपके पास सिर्फ 3-4 घंटे ही बचेंगे अगर आप वो भी मोबाइल पर बिताएंगे तो अच्छी बात नहीं। काम वही करें जो आपका दिल कहे। सिर्फ पढऩा ही बड़ी बात नहीं, दिल लगा कर पढऩा बड़ी बात है। किसी भी काम को टाले ना, काम खत्म करते चलें, अगर किसी से फोन पर बात भी करना चाहते हैं तो, बात करने के बाद ही दूसरा काम करें। इस तरह दिमाग पर बोझ नहीं रहेगा और आप अपनी पूरी एनर्जी अगले काम में लगा सकेंगे।

फैशन इंडस्ट्री : मंजिलें और भी हैं

अगर आप स्वतंत्र रुप से फैशन इंडस्ट्री में छाने की इच्छा रखते हैं तो इसकी शुरुआत बुटिक से करना ठीक होगा क्योंकि इसके लिए बहुत अधिक पैसों की भी आवश्यक्ता नहीं पड़ेगी। इसके लिए आपके पास कटाई और सिलाई की जानकारी होना आवश्यक है। इससे आपको पर्याप्त आमदनी तो होगी ही साथ ही साथ आप दूसरों को भी रोजगार मुहैया करवा सकेंगे।
इमरान खान
फैशन का मतलब सिर्फ मॉडल या डिजाइनर बनना ही नहीं है। यह तो एक ऐसा शब्द है जो अपने अंदर हज़ारों अर्थ समेटे हुए है। फैशन इंडस्ट्री में मॉडल या डिज़ाइनर बनने के अलावा और भी ऐसे बहुत से जगजमाते करियर आप्शन है जिनमें युवा अपनी मंजि़ल तलाश सकते हैं। युवा वर्ग इन कोर्सों के माध्यम से अपनी सोच को पंख तो दे ही सकते हैं साथ ही यह उनकी आजीविका का एक अच्छा साधन भी साबित हो सकता है। अक्सर ऐसा समझा जाता है कि एक फैशन डिज़ाइनर एक दर्जी ही होता है पर डिज़ाइनर एक ऐसे व्यक्ति को कहा जाता है जो अपनी सोच को अपनी कलम की मदद से कागज़ पर उतारे यानि डिज़ाइनर वह है जो किसी चीज़ का डिज़ाइन या खाका अपने हिसाब से तैयार करे। फैशन की दुनिया में ऐसे बहुत से शॉर्ट और लांग टर्म कोर्स करवाए जाते हैं जिनके बाद आप फैशन की चकाचौंध का हिस्सा बन सकते हैं।
मर्चेंडाइजर : मर्चेंडाइजर उस व्यक्ति को कहा जाता है जो एक कंपनी तथा खरीददार के बीच एक कड़ी का काम करता है। कंपनियां ऐसे लोगों को नौकरी पर रखती हैं जिनकी बोलने की क्षमता अच्छी हो तथा जो जल्द ही अपनी बात दूसरे लोगों को समझा सकते हों। मर्चेंडाइजर आयात तथा निर्यात दोनों तरह की कंपनियों में होते हैं। इनका एक महत्वपूर्ण कार्य यह भी होता है कि वो कंपनी के विभिन्न विभागों में समन्वय बनाकर रखते हैं। एक सफल मर्चेंडाइजर बनने के लिए आपमें अपनी बात दूसरों को समझाने की कला तो होनी ही चाहिए इसके साथ ही अंग्रेजी की अच्छी जानकारी भी होनी आवश्यक है क्योंकि भारत का फैशन के क्षेत्र में अधिकतर व्यापार विदेशी कंपनियों से ही होता है।
एसेसरी डिज़ाइनिंग : अगर आप कपड़ों के अलावा कुछ और डिज़ाइन करने के बारे में सोच रहे हैं तो फुटवियर और ज्वैलरी आपके लिए बढिय़ा ऑप्शन हो सकते हैं। इसमें जूतों के नए डिज़ाइन तैयार करना, ज्वैलरी में नए-नए डिज़ाइन विकसित करना आदि शामिल है।
कॉस्ट्यूम डिजाइनर : कास्ट्यूम डिज़ाइनर वास्तव में वह व्यक्ति होता है जो कपड़ों को फाइनल टच देता है। फिल्म इंडस्ट्री में आज ऐसे युवाओं की भारी तादाद में जरुरत हैं जो बदलते फैशन के हिसाब से नए डिजाइन मुहैया करवा सकें। इनको सिर्फ किसी व्यक्ति विशेष के साइज़ के हिसाब से ही कपड़े बनाने होते हैं।
पैटर्न मेकर : पैटर्न मेकर वह व्यक्ति होता है जो किसी कपड़े के डिजाइन के मुताबिक पैटर्न तैयार करता है और फिर पैटर्न की सहायता से कपड़ों को तैयार किया जाता है।
फैशन इलस्ट्रेटर : यदि आप ड्राइंग में रुचि रखते हैं और फैशन की दुनिया में छाना चाहते हैं तो फैशन इलस्ट्रेटर आपके लिए बिल्कुल सही रास्ता है। फैशन इलस्ट्रेटर का कार्य विभिन्न डिजाइनों के इलस्ट्रेशन तैयार करना होता है। इसके लिए ज्यादा पढ़ाई की भी आवश्यक्ता नहीं सिर्फ आपकी सोच फैशन के मुताबिक बदलनी चाहिए।
टैक्सटाइल डिजाइनिंग : अगर आप किसी कपड़े के ताने-बाने को समझ कर उस में रुचि लेते हैं तो टैक्सटाइल में करियर बना सकते हैं। टैक्सटाइल डिजाइनिंग करने के लिए आप बी. टैक या बी. एस. सी. कर सकते हैं। यह तीन साल की डिग्री है। ऐसे और भी बहुत से शॉर्ट और लांग टर्म कोर्स विभिन्न इंस्टीट्यूट और युनिवर्सिटीज़ में करवाए जाते हैं। इन कोर्सों के लिए यह मायने नहीं रखता कि युवा गांव का है या शहर का। बस आपकी पारखी नजर फैशन को समझती है तो कोई भी आपको बुलंदी पर जाने से रोक नहीं सकता।
मेकअप आर्टिस्ट : जिन युवाओं का रुझान फैशन के अलावा मेकअप आदि के क्षेत्र में है उनके लिए मेकअप आर्टिस्ट का करियर ठीक रहेगा। एक मेकअप आर्टिस्ट का मुख्य कार्य परदे के पीछे रह कर मॉडल या हीरोइन को तैयार करना तथा मेकअप द्वारा उसके व्यक्तित्व को और आकर्षित बनाना होता है। यह बात अलग है कि इस प्रकार के कोर्स ज्यादातर लड़कियां ही पसंद करती हैं। यह एक शार्ट टर्म बेस कोर्स है जो लगभग 6 महीने में करवाया जाता है। इस प्रकार के कोर्स करने वाले युवाओं की मांग फिल्म इंडस्ट्री में तेजी से बढ़ रही है। जिस गति से फिल्मों का निर्माण हो रहा है, यह कहा जा सकता है कि अगले 5 सालों में मेकअप आर्टिस्ट की मांग में और इजाफा होगा।
फैशन पत्रकारिता : प्रतियोगिता के इस दौर में आज हर क्षेत्र में महारत रखने वालों की आवश्यकता है। इसलिए विभिन्न फैशन पत्रिकाओं एवं अखबारों को ऐसे युवाओं की आवश्यक्ता है जो फैशन में रुचि तो रखते ही हों साथ ही उनका झुकाव पत्रकारिता की ओर भी हो। अगर आप भी इन दोनों में रुचि रखते हैं तो फैशन राइटर, फैशन एडिटर, फैशन फोटोग्राफर आदि कोर्स आपके लिए बढिय़ा हो सकते हैं। इसके लिए आपका दिमाग क्रियेटिव तो होना ही चाहिए साथ-साथ आपकी फैशन पर पकड़ भी अच्छी होनी चाहिए। आजकल डिजीटल फोटोग्राफी के बढ़ते रुझान के कारण भी फैशन से जुड़े उद्योगो को ऐसे युवाओं की आवश्यकता है जो इस काम में महारत रखते हों। फिल्म नगरी मुंबई में भी फैशन की जानकारी रखने वाले युवाओं की भारी संख्या में जरुरत है जो तस्वीरों को अलग ढंग से पेश करने की कला जानते हों। ऐसे युवाओं का भविष्य अच्छा है।
एक्सपटर्स व्यूज...
इंस्टीट्यूट ऑफ अपैरल मैनेजमैंट के ज्वाइंट डॉयरेक्टर सोमेश सिंह बताते हैं कि उनके इंस्टीट्यूट में बी. ए. इन फैशन डिज़ाइन और बी. ए. इन अपैरल मर्चेंडाइजिंग में डिग्री करवाई जाती है जिस के बाद विद्यार्थी फैशन इंडस्ट्री में करियर बना सकते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि शार्ट टर्म कोर्सों में ऐक्सपोर्ट एंड मर्चेंडाइजिंग छह महीने और डिज़ाइन इन स्टाइलिंग फॉर फैशन शो छह महीने की अवधि के करवाए जाते हैं जिस के बाद विद्यार्थी फैशन की दुनिया का हिस्सा बन सकते हैं। डिजाइन इन स्टाइलिंग फॉर फैशन के अन्तगर्त विद्यार्थियों को यह पढ़ाया जाता है कि वह फैशन शो को कैसे कामयाब बना सकते हैं तथा वह उन पहलुओं पर ध्यान देते हैं जिन पर एक फैशन डिजाइनर ध्यान न दे पाया हो। उनके मुताबिक उनके इंस्टीट्यूट से कोर्स करने वाले विद्यार्थीयों को 100 प्रतिशत प्लेसमैंट दी जाती है।
जे. डी. इंस्टीटयूट के कार्यकारी निदेशक आर. सी. दलाल के मुताबिक उनके इंस्टीटयूट में शॉर्ट टर्म कोर्स में फैशन डिजाइन 1 साल, फैशन बिजनैस मैनेजमैंट 1 साल और इंटीरीअर डिजाइन में भी एक साल के कोर्स करवाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि विद्यार्थी इन कोर्सों को करने के बाद फैशन इंडस्ट्री में नाम कमा सकते हैं। उनके मुताबिक उनके इंस्टीटयूट से कोर्स करने वाले प्रत्येक विद्यार्थी को प्लेसमैंट में मदद की जाती है। उन्होंने बताया कि फैशन मैनेजमैंट में यह पढ़ाया जाता है कि विभिन्न फैशन शो और अन्य फैशन संबंधित कार्यक्रमों को कैसे मैनेज करना है तथा इनको कैसे सफल बनाना है।
14 सालों से सहेली नामक बुटीक चला रही वंदना वर्मा बताती हैं कि युवाओं के लिए फैशन इंडस्ट्री में अच्छा भविष्य है मगर इसके लिए उन्हें सही ट्रेनिंग की आवश्यकता है। युवा अगर फैशन कोर्स करने के बाद बुटीक के रुप में शुरुआत करना चाहते हैं तो उन्हें कम से कम 2 महीने की ट्रेनिंग लेनी चाहिए क्योंकि किसी भी काम के लिए तर्जुबा जरुरी है। उन्होंने बताया कि बुटीक एक ऐसा व्यवसाय है जिसे कम पैसों से शुरू किया जा सकता है और इससे अच्छी आमदनी भी हो सकती है साथ ही आप दूसरों को रोजगार भी दे सकते हैं।

Tuesday, June 15, 2010

जोश और जज्बे से भरपूर एक छोटी सी शुरुआत

कुछ कर गुजरने के लिए दिल्ली आ गया हूं। बड़ों का आर्शीवाद, छोटों का प्यार और कुछ अच्छे लोगों का साथ भी है। देखते हैं खुदा कब तक परखता है...।