Sunday, June 20, 2010

तैयार हो रही देश की युवा ब्रिगेड

आज जब लोग क्रिकेट के अलावा कुछ और देखना ही नहीं चाहते। बाकी खेलों की घटती लोकप्रियता के बीच एक ऐसा इंसान भी है जो पिछले बीस वर्षों से टेनिस के खिलाडिय़ों को तराश रहा है। ताकि वो विंबलडन जैसे बड़े टूर्नामेंट में जीत कर भारत को खेलों की दुनिया में बाकी देशों के बराबर खड़ा कर सके। जिसके लिए बाकायदा कोचिंग सेंटर खोलकर टेनिस में रूचि रखने वाले युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
इमरान खान
भारत में
टेनिस की स्थिति भी क्रिकेट को छोड़ कर बाकी बचे उन खेलों जैसी ही है जिसमें सिर्फ चंद नाम ही सुनने को मिलते हैं। लिएंडर पेस, महेश भूपति और सानिया मिर्जा को छोड़ दिया जाए तो शायद ही कोई ऐसा नाम हो जिसने टेनिस के अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में भारत को अन्य देशों के बराबर खड़ा किया हो। जब देश को अच्छे टेनिस खिलाडिय़ों की सख्त जरुरत है तो एक एकेडमी ऐसी भी है जो पिछले 20 वर्षों से टेनिस के नए सितारों को तराशने में जुटी है।
क्या है लक्ष्य : पेनिनसुला नामक टेनिस एकेडमी पिछले 20 सालों से देश के खिलाडिय़ों की प्रतिभा को निखारने में लगी है। ये भारत की सबसे पुरानी और बड़ी टेनिस एकेडमी भी है। दिल्ली, गुडग़ांव, नोएडा, फरीदाबाद, कानपुर और जालंधर समेत देश भर के 27 कोचिंग सेंटरों के करीब 6000 टेनिस खिलाड़ी इस एकेडमी में भविष्य के टेनिस को नए आयाम और अपने सपनों को उन्मुक्त आसमान देने की कोशिश कर रहे हैं।
नहीं है सुविधाओं की कमी : यहां खिलाडिय़ों को आगे बढऩे के लिए हर तरह की सुविधा दी जाती है। यह भारत की ऐसी पहली एकेडमी है जहां खिलाडिय़ों को टेनिस मशीन द्वारा ट्रेनिंग दी जाती है। भारत में पहली बार इन हाऊस ट्रेनिंग का श्रेय भी इसी एकेडमी को जाता है। स्टेट या नेशनल स्तर के टूर्नामेंटों के अलावा एकेडमी के दूसरे सेंटरों के खिलाडिय़ों में भी मैच करवाए जाते हैं ताकि खिलाडिय़ों में प्रतियोगिता की भावना पैदा हो सके और वे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलने को तैयार हो सकें। इसी एकेडमी से नेशनल लेवल के कई खिलाड़ी भी नाम कमा चुके हैं।
विंबलडन है टार्गेट : : पेनिनसुला टेनिस एकेडमी केचेयरमैन बॉबी सिंह बताते हैं कि उनकी एकेडमी का एकमात्र लक्ष्य यही है कि भारत के खिलाड़ी विंबलडन में जीत का परचम लहराएं। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए वो पिछले बीस वर्षों से दिन रात मेहनत कर रहे हैं और तब तक करते रहेंगे जब तक उनका ये सपना पूरा नहीं हो जाता।
स्र्पोट्स कल्चर का अभाव : उनके मुताबिक सरकार को स्कूलों में स्र्पोट्स कल्चर होना बहुत जरूरी है। सरकार शिक्षा प्रणाली में सुधार करके खेलों को पढ़ाई के एक अंग के रुप में उभारे जिससे विद्यार्थी में खेलों के प्रति समर्पण का भाव पैदा हो तो ही हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा सकेंगे। स्पोर्ट्स कल्चर शुरू होने से विद्यार्थी पढ़ाई के साथ खेलों पर भी ज्यादा ध्यान देंगे। अगर सरकार स्कूलों में स्पोर्ट्स कल्चर पैदा करने में कामयाब हो जाती है तो भारत को भी खेलों की दुनिया में छा जाने से कोई नहीं रोक सकता।
उत्साह से लबरेज हैं युवा खिलाड़ी : स्टेट और नेशनल लेवल के टूर्नामेंट खेल चुकी पूर्वा चौधरी और अशोक कुमार को अच्छा लगता है जब वो कोई टूर्नामेंट जीतकर घर आते हैं। पूर्वा चौधरी बताती हैं कि सानिया मिर्जा उनकी रोल मॉडल है और वो सानिया की तरह एक अच्छी खिलाड़ी बनकर देश का नाम रोशन करना चाहती है। पूर्वा, सानिया का कोई भी मैच मिस नहीं करती और उसके हर मैच से उसे कुछ ना कुछ सीखने को मिलता है। नेशनल लेवल के टूर्नामेंटों में अपने अपनी प्रतिभा दिखा चुके अशोक कुमार रोजर फेडरर के खेल से काफी प्र्रभावित है और उनके जैसा ही बनना चाहते हैं। अशोक का कहना है कि स्टेट और राष्ट्रीय स्तर पर कुछ और नए टूर्नामेंट शुरू होने चाहिए जिससे खिलाडिय़ों को और ज्यादा घरेलू मैच खेलने का मौका मिल सके जिससे वो बड़ी चुनौतियों का सामने करने में सक्ष्म हो सकें।
सख्त मेहनत की जरूरत : कोच अजय और विजय बताते हैं हमारे खिलाडिय़ों में मेहनत की कमी है। स्टेट या नेशनल लेवल पर खेलने के बाद खिलाड़ी प्रैक्टिस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। शायद इसी कारण हमारे खिलाड़ी बड़े स्तर के टूर्नामेंटों में अच्छा प्रर्दशन नहीं कर पाते। खिलाडिय़ों को कम से कम 5 घंटे रोजाना कोर्ट में पसीना बहाने की जरुरत है इसके बाद ही इंटरनेश्नल लेवल पर ये अपनी जीत का परचम लहरा सकेंगे। खिलाडिय़ों को एक और बात पर ध्यान देना जरूरी है कि वो ट्रेनिंग को बीच में न छोड़ें , क्योंकि ऐसा करने से लय खराब होती है जिससे वो अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते जिसका असर सीधे उसके खेल पर पड़ता है। उनके मुताबिक जब हमारे खिलाड़ी नेशनल लेवल पर जीतते हैं तो वे स्पोर्टसमैन कम और बिजनेसमैन ज्यादा हो जाते हैं। उनके पास एड और मॉडलिंग के इतने ऑफर आने शुरू हो जाते हैं कि वो खेल की तरफ ध्यान देना बंद कर देतें हैं और उनका मकसद सिर्फ पैसा कमाना ही हो जाता है। ऐसे खिलाड़ी फिर इंटरनेशनल लेवल पर ज्यादा कामयाब नहीं हो पाते क्योंकि खेल में तरक्की करने का एकमात्र तरीका सिर्फ प्रैक्टिस ही है।

1 comment:

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