Wednesday, July 7, 2010

जितना भी पढ़े मन लगाकर पढ़ें

आईएएस की परीक्षा में 487वां रैंक हासिल कर अपने गांव भानपुर जिला बाराबंकी का नाम रौशन करने वाले समीर पांडे से इमरान खान की बातचीत के कुछ अंश
आपको आई.ए.एस. बनने की प्रेरणा कहां से मिली?
मैं शुरू से ही दोस्तमिजाज रहा हूं। पढ़ाई में शुरू से ही अच्छे प्रदर्शन के बावजूद मेरा मन अपने अजीज मित्रों के साथ मंडली बाजी में ज्यादा लगता था। दोस्तों के बीच हमेशा ही बौद्धिक और सामाजिक विषयों पर बड़ी गरमागरम और मजेदार चर्चाएं होती थीं। लखनऊ शहर भी इस मामले में एक जिन्दा शहर है जहां मैने देश के स्थापित प्रबुद्ध जनों को न सिर्फ देखा, सुना और समझा बल्कि उनके साथ गम्भीर वैचारिक बहसों में भी भाग लिया। सामाजिक सक्रियता ने भी मुझे बहुत कुछ दिया। इसकी सकारात्मक-नकारात्मक शिक्षाओं ने भी मेरी समझ को तराशने में बड़ी भूमिका निभाई। यही वह पृष्ठिभूमि थी जिसने मुझे अध्ययन की ओर प्रेरित किया। मेरे कुछ मित्र काफी पहले से सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे थे। लेकिन मेरा मन साहित्य में ही ज्यादा लगता था। मै विश्वविद्यालय में शिक्षक बनना चाहता था इसलिए शुरू में मुझे यह क्षेत्र अच्छा नहीं लगता था। लेकिन बाद में दोस्तों के जोर देने पर मुझे भी लगा कि चलो तैयारी कर ली जाए। एमए फस्ट ईयर से ही मैंने तैयारी शुरू कर दी थी।
ये आपका पहला अटेम्प्ट था?
नहीं, ये मेरा दूसरा अटेम्ट था। पहली बार में मैं प्री नहीं क्लीयर कर पाया था। दरअसल पहली बार जब मैने यह इक्जाम दिया तो मैं अपने भविष्य को लेकर बड़ी उधेड़बुन में था। मुझे लगता था जैसे मेरी पुरानी दुनिया मुझसे दूर होती जा रही है। शायद यही मुख्य वजह थी कि मैं प्री भी क्लीयर नहीं कर पाया। मैंने लखनऊ में प्रयत्न गाइडेन्स में तैयारी की। वहां का माहौर काफी अच्छा है। अनमोल सर ने न सिर्फ मेरी अच्छी तैयारी करवाई बल्कि मेरी उधेड़बुन को भी हल करने में भी मेरी मदद की। इस बार मैंने पूरी मेहनत से पढ़ाई की और दोनों क्लीयर कर लिया।
दिन में कितने घंटे पढ़ाई किया करते थे आप?
मैं ज्यादा नहीं पढ़ता था। दिन में 6-7 घंटे ही पढ़ता था पर जितना पढ़ता था मन लगाकर पढ़ता था। मुझे ऐसा लगता है कि इस इक्जाम के लिए सिर्फ घोंटा लगाने से काम नहीं चलता। जितना भी पढ़ें मन लगाकर पढ़ें तो वही आपके लिए ज्यादा मददगार होगा।
खाली समय में क्या करते थे?
साहित्य पढ़ता था। कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना आदि हमेशा से मुझे पसंद रहे हैं। मैं हिन्दी में पीएचडी कर रहा हूं, तो तैयारी के बाद जो भी समय बचता था, उस समय या तो साहित्य की किताबें पढ़ता था, अपनी पीएचडी पर काम करता था या फिर अपने परिवार और दोस्तों के बीच समय बिताता था।
आगे के लिए आपने क्या चुना है?
मैंने आईआरएस को चुना है। अब देखते हैं कौन सा विभाग मिलता है।
आईएएस पास करने के बाद जब गांव पहुंचे तो कैसा महसूस हुआ?
परीक्षा परिणाम आने के बाद मैं लखनऊ से अपने गांव पहुंचा। मुझे यह नहीं पता था कि गांव वाले रास्ते में मेरा इन्तजार कर रहे हैं। ज्यों ही मैं अपने गांव के पास बस से उतरा तो देखा कि मेरे गांव के करीब 150 लोग गांव के पास की सड़क पर फूल, माला और मिठाइयां लिए मेरा इन्तजार कर रहे हैं। मेरे बस से उतरते ही मुझे सबसे पहले बधाई देने के लिए सभी में होड़ सी मच गयी। गांव वालों का प्यार देखकर मेरा मन उनके प्रति कृतज्ञता से भर गया। हमारे गांव में साक्षरता दर बहुत कम है इसलिए गांव वालों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। वे लोग अपने रोज-रोज के झगड़े भूलकर आज खुश थे। यह देखकर मैं जोर से हंस पड़ा।
अब आपकी साहित्यक अभिरुचि पर असर नहीं पड़ेगा?
नहीं ऐसा नहीं है। जरूरी नहीं है कि अध्यापक ही साहित्य पर काम करें। हम किसी भी फील्ड में रहकर साहित्य पर काम कर सकते हैं। मुझे तो कम से कम यही लगता है। मैं तो यही चाहूंगा कि खुदा करे आपकी बात झूठी साबित हो जाए।
आईएएस की तैयारी के लिए कोचिंग इंस्टीट्यूट से जुडऩा जरुरी है?
देखिए, अगर आप मजबूत इरादे के साथ मन लगाकर तैयारी करें तो आपको किसी कोचिंग की जरूरत नहीं है। आप बिना कोचिंग इंस्टीट्यूट से जुड़े भी तैयारी कर सकते हैं। पर अक्सर ऐसा होता है कि कई पहलुओं पर हम सोच ही नहीं पाते और वहीं एग्जाम में आ जाते हैं। कोचिंग इंस्टीट्यूट में जो अध्यापक कोचिंग देते हैं उन्हें तमाम विषयों पर अच्छी जानकारी होती है। महंगे कोचिंग इंस्टीट्यूट ज्वाइन करने के बजाय अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट से जुडऩा चाहिए। सीधे किसी इंस्टीट्यूट को ज्वाइन करने के बजाय दो-तीन दिन वहां पढ़कर देखना चाहिए।
जो युवा आईएएस करने की सोच रहे हैं उन्हें क्या कहना चाहेंगे?
यही कहूंगा कि मन लगाकर पढ़ें। अखबार, मैगजीन और न्यूज चैनल ध्यान से देखें। करंट अफेयर्स पर विशेष ध्यान रखें क्योंकि जनरल स्टडी में ज्यादातर सवाल इसे विषय से लिए जाते हैं। और सबसे अहम बात जिन्हें जल्दी-जल्दी धन का महल खड़ा करनी की चिन्ता हो वे इस क्षेत्र में न आयें तो बड़ी मेहरबानी होगी। जनता के प्रति सेवाभाव रखने वालों को ही इस क्षेत्र में आना चाहिए।

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