Wednesday, July 7, 2010

मोहब्बत अहसासों की पावन सी कहानी है...

अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का, मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा...। समाज में प्रेम को लेकर हंगामा है लेकिन दिलों में बसे प्रेम को जगाने के लिए कुछ शब्द ही काफी हैं। कुमार विश्वास के इन शब्दों का जादू लोगों की जुबान पर चढ़ा भी है और जायका बदलने में भी सफल रहा है। आई हेट लव स्टोरीज के दौर में प्यार की लौ को जलाने का काम करने वाले युवा कवि की एक कदम आगे के संवाददाता इमरान खान से हुई बातचीत के कुछ हिस्से।
दुनिया आपको पढऩे और सुनने की शौकीन है, आजकल आप क्या पढ़ रहे हैं?
अपनी चेतना के शुरुआती दौर में मैंने बहुत सी पुस्तकें पढ़ीं। हिंदी, अंग्रेजी साहित्य के अलावा मैंने बाईबल और कुरान शरीफ भी पढ़ी है और अब भी पढ़ता हूं। पढ़ाई के दौरान एक स्थिति ऐसी आती है कि वो उलझ जाता है उसको लगता है कि ये भी सही है, वो भी सही है। फिर वो धीरे-धीरे अपने बारे में सोचना शुरू करता है। इन दिनों व्यस्तताओं की वजह से किताबें तो कम ही पढ़ता हूं पर जब कोई नई किताब आती हैं तो जरूर पढ़ता हूं।
अब तक आपने जो लिखा या पढ़ा है उससे कितना सतुंष्ट हैं?
एक प्रतिशत भी नहीं। मैं जो भी लिखता हूं कुछ दिन बाद मुझे लगना शुरू हो जाता है कि इसमें वो मजा नहीं है। मुझे देश के हर कोने से युवा कवि अपनी कविताएं भेजते हैं। नई पीढ़ी मुझ से काफी हद तक जुड़ी है। अच्छी कविताओं का आना बाकी है। हो सकता है एक दिन मैं अच्छी कविता लिखूं।
आपको क्या गाना अच्छा लगता है?
जो प्रस्तुति करने वाले कवि हैं उनके साथ विडंबना ये है कि उन्हें क्या अच्छा लगता है उससे बड़ी बात ये है कि श्रोता सुनना क्या चाहते हैं। मुझे नवगीत, पारंपरिक गीत अच्छे लगते हैं। काफी हद तक मुझे पगली लड़की भी अच्छी लगती थी। एक बच्ची पर मैंने मधयंतिका नाम की एक कविता लिखी थी, वो भी मुझे काफी पसंद है। एक तलाकशुदा महिला की 4 साल की बच्ची मेरे साथ खेलने आती थी, जब मैं राजस्थान में पढ़ाता था। एक कविता मैंने कारगिल के बाद लिखी थी वो भी मुझे काफी पसंद है। कुछ बातें लिखी नहीं जाती आसमान से उतरती हैं जो दिल में घर कर जाती हैं।
आप किसी फिल्म में भी काम कर रहे हैं?
हां, गोविंदा के साथ एक फिल्म की है चाय गर्म जिसमें मैं लीड रोल में हूं। ये फिल्म जल्दी ही कंप्लीट होने वाली है।
क्या आज भी कुमार विश्वास अपने आप को एक बच्चा ही समझते हैं?
लगभग आज भी मैं उसी तरह महसूस करता हूं जैसा बीस साल पहले करता था। शायद इसलिए अपने आप को सेलीब्रिटी नहीं मानता। बच्चों के साथ खेलने जाता हूं। बीवी के साथ बाजार भी जाता हूं। जिससे मैं बाल कटवाता हूं उस के मोबाईल में मेरी आवाज की रिंगटोन है। उन्हें बहुत दिनों तक पता ही नहीं चला कि मैं ही कुमार विश्वास हूं। ये गलत खबरें हैं कि मैं लोकप्रिय हूं। लोकप्रियता एक ऐसी चीज है जो आपके साथ घटित तो होनी चाहिए पर आप उसमें घटित नहीं होने चाहिए।
आजकल आपको धमकियां भी मिल रही हैं?
मेरी टिप्पणियों के कारण मुझे जान से मार देने की धमकियां भी मिल रही हैं। कुछ दिन पहले मैं मुंबई में बाल ठाकरे के खिलाफ बोल कर आया था तो भी मुझे बहुत धमकियां मिली। कुछ कवियों को लगता है कि मेरी लोकप्रियता की वजह से उनका नुकसान हुआ है पर ऐसा होता नहीं। किसी को मार देने से आपकी आयु नहीं बढ़ती।
आपके प्रिय कवि कौन है?
संस्कृत में कालीदास, हिन्दी में तो बहुत सारे कवि पसंद है। निराला बहुत पसंद है। गीतकारों में गोपाल दास नीरज बहुत प्रिय हैं। उर्दू में गालिब का बेइंतहा दीवाना हूं। नए शायरों में बशीर बद्र साहिब का लहज़ा और मुन्नवर राणा की बेबाकी और खुद्दारी बहुत पसंद है।
आप अपने पहले प्रेम के बारे में कुछ बताएं?
प्रेम मनुष्य की चेतना का अंश है। जिस दिन उसे अहसास होता है कि मेरे अलावा भी दुनिया में कोई है। तब वो उसका आंकलन करना शुरू करता है और उस प्रोसेस में उसको प्रेम हो जाता है। लोग सोचते हैं कि प्रेम में मिला क्या और खोया क्या। प्रेम अपने आप में ही पूर्ण है। प्यार के किस्से तो व्यक्ति को अहसास करवाने के लिए होते हैं। प्रेम करने के बाद लोग दुनिया को दूसरे नजरिए से देखना शुरू कर देते हैं। दुनिया उसके सामने खुल जाती है। मैं ऐसा मानता हूं जिसने प्रेम नहीं किया वो जिंदगी के वजूद से अछूता रह गया। उसकी स्थिति ठीक उस व्यक्ति जैसी है जो मंदिर के बाहर खड़ी नंदी की मूर्ति को ही भगवान समझ कर लौट आया हो।
आजकल प्रेम घटित तो हो रहा है पर उसे मान्यता क्यों नहीं मिल रही?
मनुष्य ने समाज का निर्माण ही इसीलिए किया था ताकि वो अच्छा जीवन जी सके। वो अकेला डरता था। कुछ वर्चस्ववादी लोग आगे आ आए हैं। दुर्भाग्य से ये ऐसा समय है जब सामाजिक नेतृत्व और संस्कृति दोनों हाशिए पर हैं। ऐसा हर युग में हुआ है पर हर बार एक सोशल लीडर भी आया है जिसने चीजों को सुधारा है। एक शेर है
कितने अवतार हुए कितने पैगंबर आए
तू ना आया तेरे पैगाम बराबर आए।
खुदाई पैगाम की तरह लोग आते रहते हैं। पिछले 50-60 साल से हमारे पास कोई सोशल लीडर नहीं है। हमारे पास चमत्कार दिखाने वाले बाबा तो बहुत है पर सही राह दिखाने वाला सोशल लीडर कोई नहीं है। जैसे इन दिनों बाबा रामदेव जी को ये भ्रम हुआ है कि अगर लोग उनके योग के कारण, उनके भगवे के कारण उनका सम्मान करते हैं तो इसके सहारे वो हिंदुस्तान की सत्ता पर कायम हो जाएंगे। वो जिस राष्ट्र निर्माण की बात कर रहे हैं वो राष्ट्र निर्माण लिमिटेड कंपनियों से नहीं होता, राष्ट्र निर्माण मंजन बेचने वाली दुकानों से नहीं होता। उनमें और महात्मा गांधी में एक ही अंतर हैं कि गांधी के पीछे बिरला चलते थे और आजकल के साधु बिरलाओं के पीछे चलते हैं। देश में सामाजिक नेतृत्व की कमी है जिस कारण ऐसा हो रहा है।
आप ने किन देशों में कविताएं सुनाई हैं?
अभी मैं अमरीका और कनाडा गया था। 40 दिनों के दौरान मैंने वहां करीब 10 प्रोग्राम किए।
कविता और गीत पढऩे के अंदाज से एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है? इससे बारे में क्या कहेंगे?
हां, शुरुआत तो है, पर अभी आप इसे अच्छी शुरुआत नहीं मान सकते। ये तब संभव होगा जब इसी फार्मेट में 10-20 लोग और आएं। एक आदमी के आने से ये नहीं माना जा सकता कि माहोल बदल गया। माहोल तो तब बदलेगा जब मेरे जैसे प्रस्तुति करने वाले बहुत से कवि होंगे।

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